एक भारत 50 से 90 के दशकों का है और दूसरा भारत 90 से 2021 का। 90 से अब तक के भारत को तो बहुत सारे लोग जानते हैं लेकिन 50 से 90 का भारत बहुत ही अलग था। उस भारत में मध्यम वर्गीय, गरीब व किसान बसते थे। किसान के बेटे को मालूम था कि अपनी जमीन के दम पर कुछ भी कर लूंगा और हर वो गरीब जो गरीबी से संघर्ष करने का माद्दा रखता था उसने हुनर सीखना शुरू कर दिया ताकि वो अपने हुनर के दम पर अपने अस्तित्व को पहचान दे सके। अमीर, रईस और नेता तब भी चांदी कूट रहे थे और आज भी।
50 और 90 के बीच के मिडिल क्लास का समझने के लिए थोड़ा कुमार विश्वास के बचपन से लेकर जवानी की यात्रा पर निगाह डालते हैं। एक बालक छोटे से मिडिल क्लास परिवार और मकान में पैदा होता है। घर में 5-6 भाई-बहन हैं। रिश्तेदारों का तांता लगा रहता है और अब तो अतिथि का कांसेप्ट ही खत्म होता जा रहा है तब तो वाकई वो अतिथि होते थे। यानि बिना बताये ये अतिथि आ क्या गये और फिर महीनों तक जम गये। कभी-कभी कुछ इस प्रकार के रिश्तेदार तो भगाने पर नहीं जाते थे। या तो उनका कोई बंदोबस्त करो। यानि विवाह, नौकरी, घर आदि की व्यवस्था करो या उनको झेलते रहो। वैसे तो ये रिवाज पूरे हिन्दुस्तान में ही था लेकिन अगर पिता या घर का मुखिया दरियादिल हो और खुद को और परिवार को, हर तरह से तंग रखकर भी सेवा के लिए तत्पर रहता हो तो अन्य परिजनों की हिम्मत नहीं थी, कि वो लक्ष्मण रखा पार कर सके। ऐसे ही एक शिक्षक के यहां इनका जन्म हुआ।
यूं तो पढ़ने-पढ़ाने की प्रथा हर मिडिल क्लास परिवार में थी लेकिन शिक्षक का परिवार हो तो पठन-पाठन और लेखन विरासत में मिल जाता है। उन दिनों की एक और खासियत थी कि अपनी औकात के अनुसार प्रत्येक मध्यम वर्गीय परिवार घर में जितने अखबार, पत्रिकाएं हैं वो खरीदता था। इसके अलावा सार्वजनिक वाचनालय या लाइब्रेरी जिन्दाबाद। साथ ही कई ऐसे बुक स्टोर थे जहां पर उपन्यास, पत्रिकाएं किराये पर भी मिल जाती थी। अगर इन उपन्यास या पत्रिकाओं को समय पर लौटाया नहीं गया तो किराया डबल हो जाता था। इसका फायदा समाज को यह हुआ कि बड़ो के पढ़ने के बाद बच्चों पर यह प्रेशर बना कि समय से पढ़ लेना वरना किताब छीन ली जायेगी और ऐसा दंड मिलता भी था।
कुमार विश्वास का जन्म ऐसे ही एक परिवार में हुआ जहां संस्कारों की घुट्टी के अलावा शिक्षा और साहित्य की मुख्य धारा से जुड़ना लाजमी होना ही था। अगर स्वयं व्यक्ति भी रूचि से पढ़ता हो तो वो अपनी शिक्षा के अलावा अन्य सारे विषय सहज पढ़ जाता है जिसे आम व्यक्ति छूना पसन्द ही नहीं करता। जब विरासत और परिवार आपकी मजबूत नींव बना देते हैं तो कुछ भी ऐसा नहीं है जो आपके लिए असंभव हो। यह व्यक्तव्य पहले भी कई महान व्यक्तियों ने दिया है कि मेरी डिक्शनरी में असंभव शब्द की गुंजाइश नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि हर व्यक्ति, सब कुछ संभव कर ले, लेकिन कुछ लोग उन असंभव कार्यों को संभव कर लेते हैं, जिनकी नियति संभव होना ही था और जब व्यक्ति इस कला को सीख जाता है फिर वो अपने लिए ऐसा मुकाम बनाता है जिस पर सदियों तक लोग चलते रहते हैं।
हमारा ऐसा पक्का मानना है और यह विश्वास चार दशकों से अधिक लाखों जिंदगियों को अध्ययन करने के बाद, हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि अगर आकाश साथ ना दे तो मात्र माहौल या हिम्मत ही काफी नहीं है। 50 और 90 के दशक से तो करोड़ों लोग गुजरे हैं लेकिन कुमार विश्वास तो एक हैं। अब जरा आकाश की बात हो जाये। इनका जन्म 10 फरवरी 1970 को धौलाना उत्तर प्रदेश में भौर में हुआ था और कुंडली इस प्रकार हैः लग्न-धनु, सूर्य, बुध-मकर, शुक्र, राहू-कुंभ, चन्द्र, मंगल-मीन, शनि-मेष, केतु-सिंह, बृहस्पति-तुला।
यह जानने से पहले इस कुंडली में एक मात्र ऐसा कौन सा ग्रह है जिसने इन्हें जमीन से उठाकर आसमान पर पहुंचा दिया, थोड़ी कुंडली की व्याख्या हो जाये।
धनु लग्न में जन्म हुआ और बृहस्पति लाभ स्थान में बैठा है और उसका वादा है कि एक दिन आकाश को छूने का मौका दूंगा। फिर ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम सेटेलाइट हो जाओ या औंधे मुंह धड़ाम से गिर पड़ो। बृहस्पति यहां आसानी से कुछ भी देने को राजी नहीं है और खासतौर से जब वो नवमांश में नीच का हो। बहुत कठिन है डगर पनघट की। और इनकी शुरू की जिंदगी कुछ ऐसी ही थी।
शनि पंचम भाव में नीच का है। पंचम भाव का संबंध, व्यक्ति के सृजन से होता है और शनि आसानी से सृजनात्मक होने नहीं देता। शायद शनि सफल भी हो जाता अगर बृहस्पति और शनि में दृष्टि संयोग ना होता। इसको थोड़ा समझने की आवश्यकता है। रचना धर्मिता के घर में शनि की स्थिति अच्छी नहीं है बल्कि वो शुरू में भयंकर स्ट्रगल भी देता है। लेकिन बृहस्पति एकादश भाव में बैठकर ना केवल शनि का शुद्धिकरण करता है बल्कि उसे बल देता है कि आगे बढ़ो, खोजबीन करो और अपनी वो लाईन बनाओं जो औरों से मेल नहीं खाती। हो सकता है इस प्रक्रिया में तुम्हें बहुत असुविधा हो, विरोध हो, यहां तक भी कि लोग आपको अपमानित करने की चेष्टा करें, लेकिन पीछे नहीं हटता मैं तुम्हारे साथ हूं। अगर तुमने मुंह नहीं फेरा तो मैं तुम्हारे मुंह के सामने लाखों तालियों से बजते हुए ब्रह्मनाद को सुनवाउंगा।
स्पष्ट कर दूं कि इन दोनों ग्रहों में से कोई भी गेम चेंजर नहीं है और ना ही वो एक ग्रह है जिसकी हमको तलाश है।
दूसरे भाव में सूर्य, बुध की युति है जो अक्सर अच्छी होती है और इस युति को ज्योतिषी बड़े प्यार से बुध-आदित्य का संयोग बोलते हैं। यानि जहां बुद्धि है वहां प्रकाश स्वतः चलकर आता है और ये दोनों वाणी के स्थान में विराजे हुए हैं और कुमार विश्वास की वाणी का चमत्कार देश और विदेश माना, सराहा और पहचाना जाता है।
बताना पड़ेगा कि इन दोनों में से कोई भी वो एक ग्रह नहीं है जिसके पास कुंडली की ‘मास्टर की’ है।
शुक्र और राहू तृतीय भाव में अच्छे हैं। राहू पराक्रम देता है और शुक्र का संबंध ओपोजिट सेक्स से होता है। दरअसल शुक्र का संबंध महिला शक्ति से है लेकिन अक्सर इसको सेक्स का पर्याय समझा जाता है। ऐसी किताबें भी पश्चिमी देशों में पापुलर हैं जैसे- ‘मेन फरोम मार्स एंड विमेन फरोम वीनस’। इनकी जिंदगी में स्त्री ऊर्जा घातक और सहायक दोनों रही है। शायद किसी को नामी-गिरामी कवि, शायर, पोईट बनने के लिए इस ऊर्जा की अत्यंत आवश्यकता होती है। मेरे विचार से शुक्र यानि महिला। जरूरी नहीं है कि वो पत्नी या प्रेमिका हो वो कभी मित्र, सहायिका या बहन बनकर भी जीवन की नयी नींव रख देती है। इनकी बहन ने इनका नाम जो विश्वास कुमार था उसे पलटकर कुमार विश्वास बना दिया और पूरी दुनिया इन्हें इसी नाम से जानती है।
इन दोनों में से कोई भी वो एक ग्रह नहीं है जो इस पूरी कुंडली की जान है।
चंद्रमा और मंगल चतुर्थ भाव में स्थित हैं और 18 – 18 डिग्री पर और रेवती यानि बुध के नक्षत्र में विराजमान हैं और नवमांश में भी साथ हैं। अगर और गणना की जाये षोडश वर्ग के सारे चार्टस में साथ होना चाहिए वैसे मैंने ये गणना नहीं की। लेकिन मेरा अंदाज सही होना चाहिए। ऐसा बस अंदाज ही है। उससे फर्क भी कोई नहीं पड़ता।
चन्द्रमा अष्टम यानि फंसे हुए घर का स्वामी है। मंगल जरूर पंचम और द्वादश का स्वामी है लेकिन बारहवें घर को अच्छा नहीं समझा जाता। अब मसला ये है कि कुमार विश्वास का बनाने में वो कौन सा ग्रह है जिसकी अब हमारे साथ-साथ और सबको भी तलाश होना चाहिए।
अधिकतर लोग सोचेंगे कि शक्तिशाली मंगल के अलावा और कौन हो सकता है। ये गलत उत्तर है।
वो एक ग्रह चन्दमा है।
कारण साफ है जब चन्द्रमा को मंगल जैसे शक्तिशाली ग्रह का साथ मिल जाये तो अज्ञात से वो ज्ञान का खजाना व्यक्ति को हरदम परोसता रहता है और मंगल की ताकत से व्यक्ति दुगुने फोर्स के साथ उसे अपने अंदाज में जब परोसने लगता है तो लोग वाह-वाह ही करते हैं और वाह-वाह की गूंज से एक ऐसी मुस्कुराहट लोगों के दिलों और औठों पर अपना स्थान बना लेती है कि कुमार का नाम जहन में आते ही विश्वास जाग उठता है।
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