पिछले दो साल से कोरोना ने न केवल भारत और विश्व की हैल्थ पर असर डाला है बल्कि विश्व की आर्थिक स्थिति को भी डांवाडोल कर दिया है। भारत की आर्थिक स्थिति की विश्व में अपकमिंग इकोनोमी या ऐसे राष्ट्रों में गिनती होती है जहां आर्थिक उन्नति की अनंत संभावनाएं हैं लेकिन कोरोना ने इस आर्थिक उन्नति पर बड़ा बुरा प्रभाव डाला है।
नब्बे के दशक में जब नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह ने भारत में मुक्त इकोनोमी की स्थापना की थी उसके बाद से भारत लगातार आर्थिक उन्नति करता आ रहा था। लेकिन पिछले कुछ सालों से जहां भारत आर्थिक उन्नति कर रहा है वहीं ढेर सारी आर्थिक चुनौतियों की भी कमीं नहीं है।
पिछले 7 साल से बीजेपी सरकार ने राष्ट्र पर अपनी पकड़ बना रखी है और प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक उन्नति को एक नई दिशा देने का प्रयास किया है। नरेन्द्र मोदी की राष्ट्र पर पकड़ बहुत अच्छी है और वे युवा शक्ति के बल पर दो बार सत्तासीन हुए। नरेन्द्र मोदी के मन में राष्ट्र को लेकर बहुत सारे सपने हैं और वे हर तरीके से नये भारत का निर्माण करना चाह रहे हैं। पुरानी परंपराओं और नीतियों में उनकी कतई आस्था नहीं है और वे अपने सपनों का भारत बना रहे हैं।
इसी प्रक्रिया के अंतर्गत उन्होंने 2016 में अचानक नोटबंदी कर दी और उनका मत था कि देश में जो काले धन का प्रचलन है उसे बंद किया जाये। कोई विशेष काला धन तो नहीं मिला लेकिन देश में जो एक पेरेलल इकोनोमी थी वह पूरी तरह से चरमरा गई। इसी सरकार का जी एस टी लागू करना एक दूसरा कदम था जो आम आदमी की अर्थव्यवस्था को निचोड़ रहा है लेकिन प्रति माह राष्ट्र को करोड़ो रूपये की इन्कम होती है। मोदी सरकार का मानना है कि राष्ट्र के लोगों से पैसा इक्ट्ठा कर राष्ट्र के निर्माण में लगा दिया जाये और इस सबके चलते वर्तमान सरकार ने अपनी बहुत सारी आर्थिक नीतियों को अमलीजामा भी पहनाया। जैसे – मुफ्त घर योजना, शौचालय योजना, उज्जवला योजना, किसानों व गरीबों को धन देना इत्यादि। ऐसी और भी अनेक योजनाएं है जिनके अंतर्गत देश के बहुत बड़े तबके को फ्री में बहुत कुछ दिया जा रहा है। एक दृष्टि से यह बहुत ही नेक कार्य है क्योंकि हमारे देश में बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। इन सारे कार्यों की खूब प्रशंसा होनी चाहिए और हम भी तहेदिल से इन सारी योजनाओं का स्वागत करते हैं।
किसी भी राष्ट्र का उत्थान तब तक नहीं हो सकता जब तक उसके प्रत्येक नागरिक की व्यक्तिगत आय में सकारात्मक वृद्धि ना हो। जब व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है तो उसकी व्यय करने की क्षमता बढ़ने लगती है और जब प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुरूप व्यय करता है तो उससे राष्ट्र की जी डी पी में वृद्धि होती है। इस तरीके से आप व्यक्ति को कर्मठ भी बनाते चले जाते हैं। अगर आप उसे सहयोग या दान देने की प्रक्रिया में डाल देंगे तो हो सकता है उस व्यक्ति का विकास तो हो जाये लेकिन इससे राष्ट्र की उन्नति नहीं हो सकती। विडंबना यह है कि चाहे केन्द्र की सरकार हो या प्रदेश की, वे सब चुनाव के समय बहुत सारी मुफ्त देने वाली योजनाओं की घोषणा करते हैं और अगले पांच साल जो भी राष्ट्र या प्रदेश की आय होती है उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा इन योजनाओं पर खर्च हो जाता है। इस मामले में कोई भी पार्टी हो वे सभी इस कार्य से जुड़े हुए हैं।
सत्तर साल पहले जब देश सैंकड़ो वर्षों की गुलामी के बाद आजाद हुआ था। उस समय तो फ्री या अतिरिक्त लाभ देने की योजनाएं जो गरीब तबके को थी वो एकदम जायज थी क्योंकि इतने वर्षों की गुलामी के बाद सबसे ज्यादा पीड़ित और दबा हुआ जो समाज था वो गरीब या साधनहीन समाज ही था। इतने वर्षों में कई पार्टियों की सरकारें आयी लेकिन जो लालच देकर वोट लेने की परंपरा है उसमें सभी पार्टियां बराबर की हिस्सेदार हैं। जिस देश की युवा शक्ति 70 प्रतिशत होे वहां पर देश के नेताओं की ऐसी सोच निसंदेह विचारणीय है। वर्तमान में देश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी मालूम नहीं पड़ती। रोजगार है नहीं, हमारे लाखों युवा पढ़-लिखकर बेकार बैठे हुए हैं। कोरोना ने आम आदमी की कमर तोड़ दी, खासतौर से पिछले दो साल से। नौकरी का अभाव तो है ही साथ ही जिनकी नौकरियां है उनकी तनख्वाह कट चुकी है। मंहगाई शेषनाग की तरह फन फैला रही है। देखते ही देखते पैट्रोल 100 पार कर गया। डीजल भी जल्दी ही पैट्रोल के भाव को पकड़ने वाला है। दाल और जरूरत की चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं। एक जमाना था अक्सर सोने-चांदी के भाव घटते या बढ़ते थे। लोग आपस में इसकी बड़ी चर्चा करते थे कि सोना महंगा हो गया और चांदी सस्ती हो गई। अब बातें होती है पैट्रोल के भाव लगातार बढ़ रहे हैं। अब तो सरसों आदि के तेल भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गये।
आम आदमी के पास रोजगार नहीं है और खाने के लाले पड़े हुए हैं। लेकिन स्टाक मार्किट बढ़ता ही जा रहा है। आज तो निफ्टी भी 15000 पार कर गया। अगर यही सब चलता रहेगा तो राष्ट्र की उन्नति का तो पता नहीं लेकिन आम आदमी अवश्य ही रसातल में चला जायेगा।
आज ही मैंने अखबार में पढ़ा था कि एक कंपनी ने अपने परिवार के तीन लोगों – दो भाइयों और एक पत्नी की तनख्वाह सौ करोड़ रूपये प्रति व्यक्ति कर दी। उधर ये भी सुनने में आ रहा है कि अमेरिका लगातार नये डॉलर्स प्रिंट कर रहा है। यूरोप वाले भी कम नहीं हैं वे भी अपनी करेन्सी लगातार प्रिट किये जा रहे हैं। ये सब जो पैसा विभिन्न देश छाप रहे हैं वो हमारे जैसे देशों में अपने फायदे के लिए खर्च कर रहे हैं और जबरदस्त मुनाफा कमा रहे हैं। आप में से कुछ लोग अवश्य सोचते होंगे कि देश आर्थिक स्थिति तो पुख्ता नहीं है लेकिन स्टॉक मार्किट 52000 के ऊपर कैसे चला गया। इसका सीधा सा मतलब यह है कि से सारा पैसा स्टॉक एक्सचेंज में लग रहा है और आने वाले 3-4 महीने के भीतर जब ये देश अपना पैसा निकालेंगे तो मार्किट धड़ाम से गिर जायेगा। जो लोग स्टॉक मार्किट का कार्य करते हैं उन्हें सावधान रहना चाहिए।
रोजगार का अकाल पड़ा हुआ है, ऐसा भी बिल्कुल नहीं है। आप एमेजोन, फ्लिपकार्ट, बिग बाजार आदि पर आप कुछ बुक करके तो देखिए वहां पर भी आपको पुराने दिनों की राशन की दुकान की भीड़ की याद आ जायेगी। छोटे-बड़े शहर की किसी भी रोड़ पर देखिए आपको कोई युवक अपने कंधे पर किसी कंपनी का बहुत बड़ा बैग लादे हुए अर्जुन के तीर की तरह सीधा सामान की डिलीवरी करने चला जा रहा है। इस तरह का रोजगार बहुत है लेकिन देश की युवा शक्ति का उसके उत्थान के लिए कार्य नहीं हो रहा। कंपनी को प्रमोट करने का माहौल अवश्य बना हुआ है। इस युवक को कंपनी की तरफ से कोई लाभ नहीं मिलता और अगर सामान की डिलीवरी समय पर नहीं हो तो उसे निकाला भी जा सकता है। निसंदेह कोरोना ने देश की अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त कर दी है लेकिन अब संभालने का कार्य भी होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होगा तो आर्थिक स्थिति सुधरने वाली नहीं है।
जिस देश के पास 70 प्रतिशत से अधिक युवा हों और पूरी दुनिया इस देश की और टकटकी लगाये देख रही हो। अगर विश्व में कोई कमाल करेगा तो वो भारत का युवा ही होगा। हमारे देश के प्रत्येक युवा के मन में अपार उत्साह है और वो कुछ भी करने को तैयार है। भारत की आजादी से पहले चंद युवाओं – भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू आदि ने एक क्रांति का जो बीज बोया था वो देश की आजादी में बहुत सहायक सिद्ध हुआ था। देश स्वतंत्र है, युवा स्वतंत्र है और आसमान छूने को लालायित है। यदि वर्तमान सरकार या सरकारें प्रत्येक युवक को कोई सकारात्मक कार्य दे तो भारत की आर्थिक स्थिति बदलते देर नहीं लगेगी।
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